Bihar: अनाज रखने के लिए अंग्रेजों ने कराया था गोलघर का निर्माण, जानिए 235 साल पुरानी इस इमारत के बारे में

Bihar: अनाज रखने के लिए अंग्रेजों ने कराया था गोलघर का निर्माण, जानिए 235 साल पुरानी इस इमारत के बारे में | पटना का गोलघर बिहार की शान है और इसका एक लंबा इतिहास है। यह ऐतिहासिक स्थल गांधी मैदान के पश्चिम में स्थित है। 1979 में, इसे राज्य-संरक्षित स्मारक के रूप में नामित किया गया था। अंग्रेजों ने पटना के इस गोलघर को ऐतिहासिक स्थल के रूप में स्थापित किया। इसका निर्माण तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के प्रशासन के दौरान किया गया था। यह ऐतिहासिक मील का पत्थर 20 जुलाई, 2021 को अपनी 235वीं वर्षगांठ मनाएगा।

गोलघर बनाने का उद्देश्य

संयुक्त राज्य अमेरिका में 1770 में भयंकर सूखा पड़ा था। इसके परिणामस्वरूप लगभग एक करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। फिर इससे निपटने के लिए तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने गोलघर के निर्माण को अधिकृत किया। वर्ष 1784 में, ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने अनाज भंडारण के लिए गोलाकार निर्माण का निर्माण शुरू किया। यह 20 जुलाई, 1786 को समाप्त हुआ था। गोलघर में 1,40,000 टन अनाज की भंडारण क्षमता है। इस संरचना का इस्तेमाल आजादी से 1999 तक खाद्यान्नों को स्टोर करने के लिए किया गया था, हालांकि इसे तब से बंद कर दिया गया है।

गोलघर की संरचना

इस विशाल संरचना को खंभों के उपयोग के बिना बनाया गया था। इसकी लंबाई 125 मीटर है। दीवारें 3.6 मीटर मोटी हैं और इनकी ऊंचाई 29 मीटर है। गोलघर की चोटी पर तीन मीटर पत्थर लगे हुए थे। सबसे ऊपर 2.7 फुट व्यास का एक छेद होता है जहां अनाज अंदर डाला जाता था। गोलघर की चोटी पर जाने के लिए 145 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यहां से आप खूबसूरत शहर पटना को देख सकते हैं। इस ऐतिहासिक संरचना की तुलना मोहम्मद आदिल शाह के मकबरे से की जाती है, जिसका निर्माण 1627 और 1655 के बीच हुआ था।

गोलघर का लेजर शो

राज्य सरकार ने इस ऐतिहासिक स्थल के समर्थन में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पास में ही पार्क बनाया गया है। शाम को फव्वारे और लेजर शो होते हैं। वहीं शाम 6 से 8 बजे तक लाइट एंड साउंड डिस्प्ले होता है। इसमें आर्यभट्ट, चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक सभी को दिखाया गया है। हालांकि, लेजर शो की सुविधा अब उपलब्ध नहीं है। अधिकारियों के अनुसार, लेजर डिस्प्ले लगाने वाली एजेंसी ने अपना टेंडर पूरा कर लिया है।

गोलघर के दीवारों में आने लगी है दरारें

साल 2011 में गोलघर की दीवारों में फ्रैक्चर होने लगा। इसके बाद राज्य सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संरक्षण का काम सौंपा गया। इसकी मरम्मत में 98 लाख रुपए खर्च हुए थे। गोलघर की दरारें भर चुकी थीं। हालांकि कदम तय कर लिए गए हैं, लेकिन काम अभी अधूरा है। गोलघर देखने के लिए दर्शकों को एक टिकट के लिए 5 रुपये देने पड़ते थे, लेकिन अब उन्हें इसे देखने के लिए 10 रुपये खर्च करने होंगे।

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